Hartalika Teej puja 2022 कब है, जाने पूजा विधि
Hartalika Teej Puja 30 अगस्त 2022
Hartalika Puja Muhurat = 06:15 to 08:42
Duration = 2 Hours 26 Mins
Tritiya Tithi Begins = 18:04 on 30 अगस्त 2022
Tritiya Tithi Ends = शाम तक
History of Hartalika teej
हिंदू महिलाओं द्वारा मनाए गए सभी तीन तीज त्यौहारों में हरतालिका तीज सबसे महत्वपूर्ण है। यह हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष (चंद्रमा के चरण चरण) के त्रितिया (तीसरे दिन) पर मनाया जाता है। देवी पार्वती के सम्मान में विवाहित महिलाओं द्वारा हरतालिका तीज का त्यौहार मनाया जाता है और इसमें तीन लगातार दिनों के लिए सख्त उपवास शामिल होता है। हरतालिका शब्द ‘हरत’ शब्द जिसका अर्थ है’ महिला मित्र को दर्शाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती के अवतार का अपहरण उनके दोस्तों-रिश्तेदारों ने भगवान विष्णु से विवाह को रोकने के लिए उनका अपहरण कर लिया था। अंत में वह बाद में भगवान शिव से शादी हुई।
हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार होने के नाते, देश के अधिकांश हिस्सों में बराबर उत्साह के साथ हरतालिका तीज मनाया जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार के भारतीय राज्यों में भी उत्सव अधिक भव्य हैं। मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में उत्सव भी देखा जा सकता है। राजस्थान राज्य में संगीत और गायन के साथ देवी पार्वती की मूर्ति लेकर एक विशाल जुलूस है। दक्षिणी राज्य तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में, हरतालिका तीज व्रत को गोवरी हब्बा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं देवी गोवरी से खुश विवाहित जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करती हैं।
हरतालिका तीज व्रत कथा
लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया. इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया. कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया. माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे.
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया. पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी. फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं. तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई.
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया. तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया.
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं. साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है. उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है.