छठ पूजा (Chhath Puja) क्या है, और यह बिहार मे कैसे मनाया जाता है? | Bihar Chhath puja celebrations
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2021 में छठ पूजा की तारीख
- 08 नवंबर: दिन: सोमवार: नहाय खाय से छठ पूजा का प्रारंभ।
- 09 नवंबर: दिन: मंगलवार: खरना।
- 10 नंवबर: दिन: बुधवार: छठ पूजा, डूबते सूर्य को अर्घ्य।
- 11 नवंबर: दिन: गुरुवार: उगते हुए सूर्य को अर्घ्य, छठ पूजा
छठ पूजा कथा
बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम प्रियब्रत था और उसकी पत्नी मालिनी थी। वे बहुत खुशी से रहते थे किन्तु इनके जीवन में एक बहुत बचा दुःख था कि इनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद से सन्तान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये बहुत बडा यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी। किन्तु 9 महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। राजा बहुत दुखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।
अचानक आत्महत्या करने के दौरान उसके सामने एक देवी प्रकट हुयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी हूँ और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है। राजा प्रियब्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद स्वरुप सुन्दर और प्यारी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।
सूर्य उपासना के पुरानी कथा:
बहुत समय पहले की बात है राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के निर्देश पर इस दंपति ने यज्ञ किया जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से यह उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। इस घटना से विचलित राजा-रानी प्राण छोड़ने के लिए आतुर होने लगे। उसी समय भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं।
उन्होंने सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी। राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
इस त्योहार से जुड़ी बहुत -सी प्राचीन कथाएँ हैं जिनमें से कोई रामायण काल की है तो कोई महाभारत काल की। इस पर्व की तैयारी दिवाली के बाद ही बड़े उत्साह से शुरू जाती है। छठ पूजा के पहले दिन यानि चतुर्थी के दिन महिलाएँ चने की दाल, लोकी की सब्जी ,काअरवा चावल का भात और रोटी आदि खाती है।
अगले दिन (पंचमी दिन )वह रात को सिर्फ गुड़ की खीर खाती है जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन यानि कि षष्ठी के दिन वह निर्जला व्रत रखती है और अपनी सामर्थ्य के अनुसार 11, 21 या 51 फलों का प्रसाद बाँस के डालिया में बाँधकर अपने पति या बेटे को दे देती है और नदी की तरफ चल पड़ती है। जाते जाते रास्ते में महिलाएँ छठी माता के गीत गाती हैं।
प्रसाद के रूप में पूरी लड्डू, मिठाई, चावल का मिला हुआ लड्डू, नारियल, शेव, संतरा, ईख, पनियाला, टाभ, मौसमी, अनार, केला, खीरा, कच्चा हल्दी इत्यादि सुप में भर कर एक डाली में भर कर माथे पर उठाकर खाली पैर घाट पर पहुँचकर पंडित से पूजा करवाकर शाम को कच्चे दूध से डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देती हैं। अगले दिन उदय होते हुए सूर्य को भी कच्चे दूध से अर्ध्य दिया जाता है और फिर वह अपना व्रत तोड़ती है। छठ पूजा के बाद सभी लोग बहुत खुश नजर आते हैं और वहाँ पर दिवाली जैसा दीपों की जगमगाहट पटाखों की तर -तराहट देखने में सच मायने में दिल को छू जाती है। वो दृश्य बड़े ही मनमोहक होती है।
छठ पूजा (Bihar Chhath puja)
छठ पूजा बिहार के सबसे प्रमुख त्योहार है और इसे बिहार का त्योहारों का त्योहार कहा जाता है और छठ पूजा बिहार मे बहुत हीं धूमधाम के साथ मनाया जाता है, बिहार के छठ पूजा देखने का मजा ही कुछ और है। यह 4 दिन का त्योहार है,और जो व्रत रखता है उसे उपवास और लगभग 36 घंटों के लिए पानी की घूंट के बिना उपवास रहना होता है, एवं ठंडी के मौसम मे भी लंबे समय तक तलाब अथवा नदी के पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूरज को अरग देते हैं और सुर्य भगवान की पूजा की जाती है और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाता है.
छठ पूजा बिहार की संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है यह ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन दोनों ही समय में मनाया जाता है,लेकिन शीतकालीन छठ को शुभ माना जाता है एवं जो छठ ग्रीष्मकालीन है, उसे चैती छठ भी कहा जाता है एवं छठ पूजा के मौसम के दौरान, बिहार मे दुनिया भर के लोग इस उत्सव को देखने के लिए यहाँ आते हैं एवं बिहार के राजधानी पटना के छठ देखने का मजा ही कुछ और है क्योंकी पटना मे छठ पूजा गंगा नदी के किनारे पर मनाया जाता है.
PHOTO OF PATNA GANGA CHHAT GHAT